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Dream Journal

6 July, 2024

Acknowledging my failures, I gained a reason to succeed. Knowing my reason of failure, I estimated a probable roadmap to success. With a map of treasure in hand, I traveled far & wide, both in physical space and temporal zones.

अपने लेखन-परियोजना के दूसरे खंड - "आगे क्या?" पर मैंने काम करना शुरू किया। पर क़रीब 9 अध्याय लिखने के बाद, मुझे अपने लेखन से संतुष्टि नहीं मिली। इसमें सुधार करने की हिम्मत नहीं है। सुधार करने से आसान, मुझे नयी शुरुवात करना ज़्यादा उचित लगा। नौवाँ अध्याय पूरा नहीं हो पाया, अधूरा ही है, शायद ही पूरा…
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होते हुए भी हम कितने असहाय हैं, अपने जीवन में सही अभिव्यक्ति को तलाशने में। हम जब कहना चाहते हैं - क्यों नहीं हो पाएगा.. हमारी अभिव्यक्ति में कहीं छिपा होता है - ये नहीं हो पाएगा। हम ख़ुद को जब अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम नहीं तो कैसे हम लोकतंत्र को समझ पायेंगे? कैसे वोट कर…
लगभग २० वर्षों के बाद आज भी वही सवाल सामने है - आगे क्या? आज भी वही जवाब है - नहीं पता। आपके पास अगर कोई सुझाव हो तो बतायें। दूसरों की नज़र में तो ख़ुद को असफल देखता ही आया हूँ, आदत सी हो गई है। पर अब तो अपनी नज़रों में भी असफलता का चश्मा पहने घूमता हूँ। माँ पिता की मेहनत और ईमानदारी से कमाई…

Social Journal

सोचकर देखिए! एक PPP मॉडल में गाँव बसाने की बात लिखी है मैंने, जहां सरकार गाँव चलाएगी। पब्लिक में भी जहां लोक होगा, और प्राइवेट में भी लोक ही रहेगा जो तंत्र का संचालन करेगा। कई गवर्नमेंट स्कीम से फण्ड उठाया जा सकता है। कई तरह के निवेशों पर सरकार से कर माफ़ करवाया जा सकता है। उस गाँव में बुनियादी हर…
Over the years after independence, in place of creating harmony we have established a cosmetic democracy. In an ideal democracy, the pre-defined rules and regulations must be minimal. But, historically we have witnessed a spiralling complication in the law and order. The current status is that no…

Indian economy is crumbling. It has been shattering from a long time, now its on the verge of a fall, may be a fatal one. We are already losing life over very trivial issues. A breakup, a failure in an exam is enough for the youth to take a life or two.

मेरे अनुमान से इस शिक्षा व्यवस्था में एक ऐतिहासिक और दार्शनिक दोष है। हमारे इतिहास में आज तक पुनर्जागरण काल नहीं आया, जब जनमानस को अपनी रचना-शक्ति पर आस्था हो। यह आस्था ही थी जिसने साहित्य, कला के रास्ते उद्योग की रचना की। हमारे आदिकाल में ही कहीं स्वर्ण-युग की तलाश में देश और काल की जवानी बर्बाद…
जब तक जंगल के क़ानूनों पर लोकतंत्र चलता रहेगा, मुझे तो उम्मीद नहीं है कि कुछ भी जीवन के पक्ष में बदल पाएगा। जब शिक्षा-दीक्षा में प्रतियोगिता से सहयोग की भावना का संचार होगा, तभी जिस लड़ाई को हम और आप लोकतंत्र के दंगल में लड़े जा रहे हैं, उसका समाधान मिल पाएगा। धर्म और शिक्षा जिस सामाजिक अवधारणा की…
महंगाई — किसी भी अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य अवांछनीय भाग है। अकसर, महंगाई की साहित्यिक तुलना डायन से की जाती रही है। क्यों महंगाई बढ़ जाती है? मेरी समझ से इसके तीन आयाम हैं, जिसमें तीन घटक अपनी भूमिका निभाते हैं। ये तीन घटक कुछ इस प्रकार हैं — माँग, आपूर्ति और क्रय शक्ति। आय और क्रय शक्ति का सीधा…
एक समय था, जब यह देश सोने की चिड़िया कहलाता था। हमारा सत्य सनातन था, सटीक था। ब्रह्म सत्य थे, और जगत मिथ्या। संभवतः, , इसीलिए मिथकों पर ही हमने अपनी आस्था को निछावर कर दिया। अपनी ज़रूरतों पर हमने ही अपने इतिहास में ध्यान नहीं दिया। हमने इतिहास की भी ज़रूरत को नज़रंदाज़ कर दिया। हमें अपना ही इतिहास…
शिक्षा की सबसे अहम ज़रूरत हमारी ज़रूरतों के बीच संतुलन क़ायम करने का है। एक अशिक्षित तार्किक प्राणी अपनी ज़रूरतों का नीति-निर्धारण करने में असमर्थ होता है। इसलिए, शिक्षा के माध्यम से सभ्यता स्थापित करने का प्रयास, लोकतंत्र आदिकाल से करता आया है। राजनैतिक पृष्ठभूमि पर लोकतंत्र अभी बच्चा है। अभी तो…
स्वर्ग, मोक्ष, मुक्ति, जन्नत या हेवन एक ही अभिलाषा या कल्पना के अलग-अलग रूप हैं। दुख या दर्द हो, या इंद्रियों को प्राप्त सुख ही क्यों ना हो? भोगती तो चेतना ही है, जो ख़ुद आत्मा का क्षणिक वर्तमान है। आत्मा की शाश्वतता को हमारी चेतना वर्तमान की अनंतता के साथ जोड़कर ही समझ पाती है। सुख-दुख अनुभव के…
लोकतंत्र दवा में भी दारू मिलकर बेच रहा है। दवा की दुकानों से जितनी मदिरा मेरा इहलोक अपने-अपने घर लाता है, उतनी कभी किसी मैखानों में भी कहाँ बिकी होगी। पर दवा की ज़रूरत वह जानता है, क्योंकि लोकतंत्र ने ही उसे बतायी है। अपनी मधुशाला की ज़रूरत समझने के लिए ही तो आत्मनिर्भर होना हमारे लिए ज़रूरी है।…
तुम्हारा पिता, तुमसे से वादा करता है — तुम्हें वो इस काबिल बनाएगा कि एक देश की लोकतंत्र की गद्दी को चुनौती दे सको। तुममें इतनी ऊर्जा और ईमानदारी होगी की तुम इस लोक में इस तंत्र को सम्भाल सको। फिर तुम अपने जैसा इस देश की हर बेटी और उनके भाइयों को बनाना, ताकि वे तुमसे तुम्हारी गलती का हिसाब संवैधानिक…
देश में बेरोज़गारी इस कदर बढ़ गई है कि दो से तीन भिखारियों का रोज़ कॉल आता है। पढ़े लिखे बेरोज़गार और करेंगे भी क्या? या तो मंदिरों में घंट बजायेंगे या फिर दफ़्तर-दर-दफ़्तर अपना बायोडेटा ले कर चप्पल घिसेंगे। जब तक हिम्मत बचेगी सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करेंगे। जब चप्पल पूरी खिया जाएगी तब ग़लत…
“अरे भाई! मुझे लगता है इस विषय पर अच्छा शोध हो सकता है। पीएचडी में दाख़िला लेने वाला हूँ। कोई अच्छा रिसर्च टॉपिक तो होना ना चाहिए। इससे अच्छा क्या हो सकता है कि मैं सेक्स एजुकेशन जो काफ़ी उपेक्षित विषय है, उसके दार्शनिक, सामाजिक और मानसिक पहलू पर शोध करूँ। जिस तरह से सेक्स-संबंधी समस्याएँ समाज में…
अगर ध्यान करना अपने अस्तित्व को चेतन रूप में निहारना है, तो संभोग का अपमान ठीक विपरीत प्रक्रिया है, जो उसके मूल उद्देश्य का विपरीतार्थक है। आज-तक मेरा अनुमान था की जिस सामाजिक यातना से हम हर रोज़ रूबरू होते हैं, उसकी जड़ें धार्मिक प्रवृति की हैं। इसलिए मैं धर्म से नफ़रत करता आया था। पर मेरे नये…

Philosophical Journal

Mind that failed to comprehend unity in truth, fails to find logic in each and every duality it encounters. For a practical life, we need at least three unit to survive any conceptual or imaginary entity. This fact is widely discussed in philosophical forums. Even the modern age thinkers and…
The better we train our mind to focus on our nearest past and future in this present, the greater is the possibility of finding joy every now and then. Its better to keep our minds occupied with the short term memories. It is wisdom of a wise man who can filter out only information from long term…
भरोसे को कोई प्रमाण नहीं चाहिए। इसलिए, आस्था भी अंधी हो सकती है। हम कल्पनाओं के साथ-साथ अपने भ्रम पर भी भरोसा कर सकते हैं। पर, ऐसा कर लेने से हमारी कल्पनाएँ सामाजिक इतिहास का हिस्सा नहीं बन जायेंगी। निःसंदेह, वे साहित्यिक इतिहास का भाग हैं। पर, इससे लोकतंत्र की राजनीति क्यों प्रभावित होती जा रही है…
श्रीमान पॉवलोव ने अपने कुत्ते पर प्रयोग किया था। कुत्ते को ख़ाना देने से पहले उन्होंने घंटी बजाना शुरू किया। कुछ ही समय में कुत्ते को यह बात समझ में आ गई कि जब भी घंटी बजती है, उसे ख़ाना मिलता है। एक दिन मुहूर्त निकालकर पॉवलोव भाई ने घंटी तो बजाई, पर कुत्ते को ख़ाना नहीं दिया। बेचारा, कुत्ता लार…
असंतोष तो हमारा पैदाइशी अवगुण है। संतोष के लिए ही तो हमें शिक्षा, ज्ञान और प्रज्ञा की ज़रूरत पड़ती है। पर यहाँ तो सारा खेल ही उल्टा है। पूरी की पूरी ज्ञान की गंगा ही उल्टी बह रही है। परिवार, समाज और शिक्षा ही हमें असंतुष्ट रहने का पाठ पढ़ाये जा रहा है। फिर, यही लोग कहते हैं कि भ्रष्टाचार भी बढ़ रहा…
Elizabeth B॰ Hurlock ने “Self-Concept या आत्म-अवधारणा” को बड़ी बारीकी से समझाने का प्रयास किया है। जिसके लिये उन्होंने कई दार्शनिकों और मनोवैज्ञानिकों के द्वारा दी गई परिभाषाओं और सिद्धांतों का प्रयोग किया है। उन्होंने William James और Sigmund Freud जैसे मनीषी दार्शनिकों के साथ-साथ कुछ नामचीन…
इस लोक की अनंतता में ही उसकी समग्रता है। शून्य ख़ुद में पूरा है — ख़ुद मूल्यवान भी है, मूल्यहीन भी वही है। शून्य “०” अनंत भी है — उसके अंदर भी एक पूरी दुनिया है, उसके बाहर भी एक पूर्ण ब्रह्मांड बसता है। कल्पना के परे भी कोई दुनिया है, या हो सकती है, इससे शायद ही कोई तार्किक प्राणी एतराज रखेगा। एक…
Life is a barter with free-will. Even time is a product of our free-will. Under Lifeconomics, we shall try the same in a more practical and economical manner. Here as well as in future, with Learnamics and Expressophy. So, even when you don’t get all the answers here, you can command your reason to…
Body and consciousness would have been sufficient to explain the existence, if they were not limited by death. But death mandates a reasonable explanation for after-life. That’s where the concept of soul steps in, as the master of infinity and eternity, the point where the trinity of knower, known…
No identification is as important as self-identification. But to answer the question - “Who am I?”, is not that straightforward. Self is a true treasure, and this journey to self is a real adventure but definitely, it's not the easy one. Most aspirants give up, some catch a glimpse and rare among…
When we perceive a body in motion independent of external impulses and together when we witness its organic growth over time, we then acknowledge the miracle of life in the form of an idea. The body, the idea of awareness i.e. the consciousness and the autonomous energy as the cause of…
The trinity of food, sex and danger is so important that a large part of the brain is devoted to this purpose. In the psychological domain, it is often referred to as the old brain, or reptilian brain as we share this portion with almost all the animal kingdom. Our animalistic instincts cannot…
‘Lifeconomics’, is an attempt to find ways and means to establish microeconomic stability in the modern social scenario where the macroeconomic setup is that of a knowledge economy. The knowledge economy thrives on intellectual capital, which makes education the most profitable investment in…
Death as such may be divine, but godliness lies in life. This brings us to The Eternal Triad of life, truth and god - from which the fountain of knowledge and wisdom originates and flows in all directions.
मुक्ति के लिए लोक को हर काल और स्थान पर अपने ज्ञान पर आस्था बनानी पड़ती है। नास्तिकता एक बौद्धिक पंथ है, जो आस्था का ही अनादर करती है। इस कारण पंथ की समस्या बरकरार ही रहती है और रंग में भंग डालने के लिए नास्तिकों का एक अलग पंथ चला आता है। महफ़िल खूब सजती है, सबको मज़ा भी खूब आता है। कब रंगों की…
धार्मिक समस्या पाखंड में निहित है। दर्शन, मिथक और कर्मकांड तक तो धर्म ही था, चाहे वह किसी भी पंथ का क्यों ना हो! पाखंड से ही तो धर्मालयों और राजनीति की दुकान चल रही है, जो लोक के लिए एक जानलेवा नशा है। तंबाकू या दारू से कहीं ख़तरनाक समाज की शिक्षा के प्रति उदासीनता का जो कैंसर है, वह पूरे लोक और…
कौन सी ऐसी सामाजिक समस्या है, जिसका निदान तंत्र नहीं कर सकता है? पर इस लोक की समस्या ही तो यही है कि तंत्र ख़ुद ही एक समस्या बन चुका है और लोक उस समस्या की अग्नि में उधार लेकर घी डाल रहा ह। जो आग एक-न-एक दिन उसका घर ही जला डालेगी। लोक तो बस जलने का इंतज़ार करता प्रतीत होता है। हालत तो ऐसी है कि देश…
फलों के मुख्यतः तीन प्रकार हैं - जाति, आयु और भोग। ये फल हमें हमारे कर्मों के अनुरूप मिलते हैं। जाति द्वारा हमारे जन्मों का निर्धारण होता है। आयु से यहाँ सिर्फ़ हमारी उम्र का ही निर्धारण नहीं होता है, बल्कि हमारे फलों की आयु का भी निर्धारण होता है, अर्थात् जो फल हम भोग रहे हैं, वो हम कितनी देर तक…
विज्ञान भी मानता है कि हमारा शरीर उन्हें पाँच तत्वों को मानता है, जिसे भारतीय दर्शन में पंचमहाभूत माना गया है - आकाश (Space) , वायु (Quark), अग्नि (Energy), जल (Force) तथा पृथ्वी (Matter)। रट्टा मारकर इन बच्चों का क्या भला हो जाएगा? किसी तरह यह बच्चे प्रधानमंत्री या न्यायाधीश भी बन गये तो जीवन के…
जीवन का अर्थ तो आनंद की मात्रा और उसकी गुणवत्ता ही तय करती है। आनंद तो ज्ञान के रास्ते ही मिल सकता है। यह रास्ता किसी के लिए निर्धारित नहीं है, यहीं हम अपने इच्छा-स्वातंत्र्य का प्रयोग करते हैं। यही चुनाव हमारे जीवन के अर्थों का मापदंड है। राम और रावण दोनों ही ज्ञानी थे, उनमें अंतर तो आनंद का ही था…
मेरी दो प्रमुख मनोवैज्ञानिक समस्या है। पहला नशा है। मैं कई तरह के नशे का सेवन करता आया हूँ। तंबाकू से शुरू करते हुए मैं शराब तक पहुँच, जहां से ड्रग्स के रास्ता भी कुछ दूर चल चुका हूँ। संभोग एक शारीरिक समस्या तो बाद में है, वह पहले तो यह एक मानसिक उलझन है। नशे से उत्तपन्न भ्रम और संशय ने मेरी चेतना…
वनस्पति या पशु जीवन को हमारी ज़रूरत नहीं है, पर हमें हर प्रकार के जीवन की ज़रूरत जान पड़ती है। आख़िर ख़ाना जो आवश्यक त्रय का हिस्सा है, जिसकी पूर्ति तो अन्य जीवन के स्रोतों से ही हमें प्राप्त होती हैं, चाहे हम शाकाहारी हों, या मांसाहारी। अंतर तो सिर्फ़ भावनात्मक स्तर पर होता है, जो Mid-Brain पर…
भारतीय दर्शन के अनुसार हमारे दुखों के तीन मुख्य स्रोत हैं - आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक! हर इंसान का जीवन सुख और दुख के बीच झूलता रहता है। सुख तो भोगने की चीज है। इसलिए, सुख के कारण पर चिंतन करने की ज़रूरत शायद ही किसी ने ज़रूरी समझी होगी। मैंने भी कभी अपने सुख ओर सवाल नहीं किए हैं। मैं भी…