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प्रस्तावना

दिनांक: 28 अप्रैल, 2023

 

अप्रैल की सोलहवीं तारीख़ थी।॰॰॰ 

नहीं! नहीं! रुकिए! इस दिन से तो मेरी यात्रा शुरू हुई थी। इसके पहले मेरी बग़ावत की कहानी तो जान लीजिए!

हाँ! तो जनाब, इसके लिए आपको एक पूरी किताब पढ़नी पड़ेगी, तभी दूसरे भाग की पृष्ठभूमि आपकी समझ में आएगी। उस किताब का नाम है - “इहलोकतंत्र (भाग - 1: सत्याग्रह)”। फिर भी अगर आप अपने बच्चों से प्यार नहीं करते, या उनके लिए आपके पास समय नहीं है, तो कम-से-कम इस भाग को तो ज़रूर पढ़ लीजिएगा। अगर आपने पहला भाग पढ़ लिया है तो मैं आपका आभारी हूँ।

पर कुछ भी पढ़ने से पहले यह भी जान लीजिए, अगर आपने इस रचना के हर शब्द को ईमानदारी से पढ़ लिया, तो मैं आपको यह साबित कर दूँगा कि आप बेईमान हैं। क्योंकि कुछ भी साबित करने के लिए तो सिर्फ़ तर्क लगते हैं। हाँ! मैं यह भी समझा दूँगा कि तुम ही ब्रह्म भी हो, क्योंकि समझाने के लिए अनुभव लगता है। अब यह आपकी समझ पर निर्भर करता है कि क्या आपका ‘ब्रह्म’ बेईमान है?

इसलिए, इस रचना को आप बहुत सावधानी से पढ़िएगा। यह एक बार में समझ में आने वाली रचना नहीं है। अपनी समझ पर भी भरोसा मत कीजिएगा। यह जगत मिथ्या है। सिर्फ़ ब्रह्म सत्य है, जो हम ख़ुद हैं!

उम्मीद तो मुझे यह भी है कि कोई भी तार्किक इंसान इसे ख़ुद की जीवनी समझकर अपने साथ ले जाये, जहां जाये इस रचना को अपना प्रत्यक्ष बनाकर ले जाये, जैसे मैं मधुशाला लिए फिरता हूँ।

मेरी पूरी कोशिश है कि सरलतम भाषा में दर्शन के गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठा दूँ। इसे रचते हुए मुझे ऐसा एहसास हो रहा था, जैसे मेरा मन पहले भाप बनकर ऊपर उठा, फिर बादल बना, फिर ज्ञान की गंगोत्री पर मेरा ‘बेवक़ूफ़’ मन, बूँदों की तरह बरस गया। इस रचना की सफलता का अनुमान तो मुझे आपके प्रत्यक्ष से ही मिल पाएगा। आप बस इस रचना के साक्षी बन जायें, यह शिक्षा-क्रांति की तरफ़ हमारा पहला कदम होगा। आपकी यात्रा मंगलमय हो! 

आपकी इस यात्रा के लिए मैं किसी का आभार व्यक्त नहीं करूँगा, क्योंकि इस कायनात के जर्रे-जर्रे का मैं आभारी हूँ, ख़ुद का भी और आपका भी।

 

दिनांक: ३ जुलाई, २०२३

Note: इस किताब का कुछ भाग मैं यहाँ डाल रहा हूँ। इस उम्मीद मैं Sukant Kumarकी आप इसे पढ़कर अपनी राय दे सकें। साथ ही अगर आपकी रुचि जागे, तो इस किताब को आप ख़रीदकर पढ़ें भी। आप ख़रीदकर पढ़ेंगे, तभी तो इस दार्शनिक लेखक को अर्थ मिलेगा! 

कुछ भाग इसी शृंखला के चार अन्य वेबसाइट पर भी मिल जाएँगे। जो कुछ भी इस किताब में ज़रूरी है, वह आपके सामने सरलता से उपलब्ध है। मुझे नहीं लगता है कि ज्ञान का व्यापार संभव है। इसलिए मैं अपनी मेहनत के फल को निस्वार्थ आप तक पहुँचाने का हर संभव प्रयास कर रहा हूँ। मैं तो सिर्फ़ अपनी मेहनत का मेहनताना लोक से माँग रहा हूँ। आपको निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता है। इस किताब के तीन खंड हैं। यह दूसरा है। इस भाग का अधिकांश हिस्सा ही पूरे पाँचों वेबसाइट पर बिखरा मिलेगा। यहाँ तो कुछ ही है। जल्द ही तीसरे पर काम शुरू करूँगा, अपने ब्लॉग और वेबसाइट को पूरा करने के बाद। इतना पढ़ने के लिए मैं आपका आभारी हूँ।Sign

आपका अपना,

सुकान्त कुमार