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Author's Choice

The night was calm, but Sukant’s mind was anything but. He paced the room, thoughts bouncing between grand plans and quiet fears. His study, though modest, held all the tools he needed: books piled high, a sturdy desk, a glowing laptop screen.

दोपहर की नीरवता चारों ओर फैली थी। ऐसा लग रहा था जैसे समय ने खुद को रोक लिया हो, दिन की सुस्त गति और सुकांत के मस्तिष्क की बेचैन ऊर्जा के बीच। वह अपनी अध्ययन कक्ष में बैठे थे, चारों ओर किताबें, जो अनकही कहानियाँ और ज्ञान का प्रतीक थीं। उनके सामने एक खाली नोटबुक खुली थी, जिसके स्वच्छ पन्ने उनकी…

It was a still afternoon, the kind where time seemed suspended, caught between the lazy rhythm of the day and the quiet urgency within Sukant’s mind. Sitting in his study, surrounded by books that whispered of untold knowledge, Sukant found himself in reflection.

In a dimly lit room in the heart of Bihar, a man sat hunched over a desk cluttered with books, notes, and scattered pieces of his life’s ambition. Sukant Kumar, a gold medalist and a scholar with credentials many could only dream of, stared at the flickering glow of his computer screen.

बिहार के एक छोटे से कस्बे में, एक हल्के से जगमगाते कमरे में, एक व्यक्ति किताबों, नोट्स और अपनी महत्वाकांक्षाओं के टुकड़ों से घिरे हुए बैठे थे। वह व्यक्ति थे सुकांत कुमार—एक स्वर्ण पदक विजेता और एक विद्वान, जिनके पास वह सब कुछ था जो कई लोग केवल सपना देख सकते थे। लेकिन, विडंबना यह थी कि वह अपने…

6 July, 2024

Acknowledging my failures, I gained a reason to succeed. Knowing my reason of failure, I estimated a probable roadmap to success. With a map of treasure in hand, I traveled far & wide, both in physical space and temporal zones. I reached the precise destination dictated…

The richest and wisest father answered- " It's something that I have been training you through, all my life. Now is the time for you to define ‘Death’ for yourself and teach your child how to be inmortal someday."

मेरा एक सहपाठी मित्र है, जो अब मुझसे बात नहीं करता। पेशे से वह वकील है। उसने देश के सबसे अच्छे केंद्रीय महाविद्यालय से वकालत की पढ़ाई की, फिर कुछ साल इस देश के सर्वोच्च न्यायालय में उसने प्रैक्टिस भी की। फ़िलहाल वह देश के समृद्ध महाविद्यालय के निजी कॉलेज में व्याख्याता है। बच्चों को न्याय पढ़ाता…

कल्पनाएँ असीमित हो सकती हैं। शब्द भी अनगिनत हैं। अभिव्यक्ति की संभावनाएँ भी अनंत हैं। इसी अनंत में अपने अर्थ की तलाश का हमें शुभारंभ करना है। संभवतः मैं ग़लत हो सकता हूँ। मेरा सही होना ज़रूरी भी नहीं है। ज़रूरी तो जीवन है। जीवन की अवधारणा सिर्फ़ और सिर्फ़ वर्तमान में ही संभव है। इसकी उम्मीद हम…
I don't know what the future holds for me. But I am sure I am coming back again for more. This sojourn has given me something I have been missing for long. I shall be off to bed now as it's already midnight and I have to drive for nine and half hours according to Google.
देश में ना मौजूदा प्रशासन और ना ही वर्तमान राजनीति को लोक या जनता की ज़रूरत है। प्राइवेट सेक्टर को तो आपकी या मेरी, या हमारे बच्चों की कभी चिंता थी ही नहीं! इसलिए तो तंत्र तानाशाह बन गया है। इनकम टैक्स से लेकर टोल टैक्स तक सीधे जनता के खाते से तंत्र के खाते में पहुँच रहा है। इधर, इहलोक में शायद…
मैं सुन कर सकते में आ गया। २ घंटे में जो विद्यार्थी राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा देने जाने वाला है, वो मुझ ग़रीब से पूछ रहा है - क्या सवाल आयेगा और वो क्या जवाब देगी? मुझे ग़ुस्सा आ गया। मैंने बोला - “बहन! आप जाना, आँख बंद करना कोई एक ऑप्शन पर उँगली रखना और औका-बौक़ा तीन तड़ौक़ा कर लेना। कृपया आप नहा-…
“अचचचचचच्छा। बहुत ही बढ़िया पिलान है आपका आऊ सरकारवा का हमका बुड़बक बनावे के ख़ातिर। पहिले १०,००० प्लस टैक्स ले कर आप काटोगे, फिर सरकार उसके बाद अलग से काटेगी, बड़का बाबू अलग दे माँगेगा अपना हिस्सा…” पता नहीं बीच में कब उसने कॉल काट दिया। हमारी तो बात ही अधूरी रह गई। पिछले २ दिनों से बज रहे राम-धुन…
कान और कंधे के बीच फ़ोन चिपकाए, सुरेशवा अपना मोटरसाइकिल ४० के स्पीड पर बिना हेलमेट चला जा रहा था। अचानक एक टेम्पो वाला साइड काटा, काहे की एक ठो पैसेंजर चिलाया - “रोको बे! अब का अपने घर ले के जावेगा!” पीछे से सुरेशवा ठुकते-ठुकते बचा। फ़ोन नीचे गिर गया था। स्मार्ट फ़ोन था, सुरेशवा का कलेजा धक से रह गया…
अपने लेखन-परियोजना के दूसरे खंड - "आगे क्या?" पर मैंने काम करना शुरू किया। पर क़रीब 9 अध्याय लिखने के बाद, मुझे अपने लेखन से संतुष्टि नहीं मिली। इसमें सुधार करने की हिम्मत नहीं है। सुधार करने से आसान, मुझे नयी शुरुवात करना ज़्यादा उचित लगा। नौवाँ अध्याय पूरा नहीं हो पाया, अधूरा ही है, शायद ही पूरा…
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होते हुए भी हम कितने असहाय हैं, अपने जीवन में सही अभिव्यक्ति को तलाशने में। हम जब कहना चाहते हैं - क्यों नहीं हो पाएगा.. हमारी अभिव्यक्ति में कहीं छिपा होता है - ये नहीं हो पाएगा। हम ख़ुद को जब अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम नहीं तो कैसे हम लोकतंत्र को समझ पायेंगे? कैसे वोट कर…
लगभग २० वर्षों के बाद आज भी वही सवाल सामने है - आगे क्या? आज भी वही जवाब है - नहीं पता। आपके पास अगर कोई सुझाव हो तो बतायें। दूसरों की नज़र में तो ख़ुद को असफल देखता ही आया हूँ, आदत सी हो गई है। पर अब तो अपनी नज़रों में भी असफलता का चश्मा पहने घूमता हूँ। माँ पिता की मेहनत और ईमानदारी से कमाई…
संतोष का व्यावहारिक अर्थ है - जितना है उस पर नाज़ करो, अहंकार नहीं, उसके बाद ही अतिरिक्त की कामना करो। बिना कामना के कोई ज़रूरत नहीं होती! और बिना ज़रूरत के इंसान कोई काम नहीं करता!
यह घटना बहुत पुरानी है। मुश्किल से मैं तीसरी या चौथी कक्षा में पहुँचा था, उम्र ८-१० साल की रही होगी। स्कूल में छुट्टी गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थी। घर पर माँ नहीं थी। पिताजी मुझे पढ़ा रहे थे। अचानक उन्हें कुछ काम याद आया। उन्होंने कहा - “तुम पढ़ो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ।”
प्राइवेट हॉस्पिटल की हालत सरकारी दफ़्तर जैसी होने लगी है, क्योंकि सरकारी दफ़्तरों पर तो सरकार ने ताला लगाने की ठान ही ली है। अब बने रहो आत्मनिर्भर। इसलिए पड़ोस से प्राइवेट कंपाउंडर को बुलाया और बेटी की हाथ में लगी पानी चढ़ाने वाली सुई निकलवा दी। मैं भी “आत्मनिर्भर” बन गया। पब्लिक सेक्टर से उदास हो…
एक हफ़्ते तक बहू भी हॉस्पिटल में भर्ती रही। बेटा, दादा, दादी और बाक़ी परिवार के लोग सब कुछ सम्भालते रहे। बेटे ने देखा बाक़ी सारे मरीज़ों का भी ऑपरेशन ही हुआ। क्या जब ऑपरेशन का विकास नहीं हुआ था तब बच्चे नहीं होते थे। सिर्फ़ पैसे के लिए डॉक्टर मरीज़ से खेलता रहता है - वह सोचता रहा। डॉक्टर ने बिल से…