तितली-जीवन
रंग-बिरंगी तितली को फूलों पर मंडराते देखा है? कभी चुपके से उसे पकड़ने की कोशिश की है? कभी किसी फूल पर शांत बैठी तितली को उसके पंखों के एक साथ हो जाने पर पकड़ा है? वह उड़ने के लिए फड़फड़ाने का प्रयास करती है। कभी उस प्रयास को विफल करने के लिए अपनी पकड़ को मज़बूत करने के लिए अपनी उँगलियों पर ज़ोर लगाया है? क्या हुआ उस तितली का? छोड़ दिया आपने? या, मसल डाला था?
अगर छोड़ दिया होगा तो सुख का अनुभव हुआ होगा। उसके रेशमी पंखों से कुछ सुनहरी धूल-सी आपकी उँलियों पर शेष बची रह गई होगी। अगर मसल डाला होगा तो एक निर्दोष प्राण आपके हाथों मारा गया होगा! शायद उस तितली के खून के कुछ छींटे आपकी चेतना पर बचे रह गये होंगा। शायद॰॰॰ आपको ग्लानि का एहसास हुआ होगा? या शायद नहीं, आख़िर एक तितली ही तो थी। उसकी जान की क्या क़ीमत?
हम तो इंसान हैं, हमारी जान तो क़ीमती है!
पर इन तितलियों जैसी ही एक ऊर्जा शक्ति हमारे शरीर को गतिमान बनाये रखती है। ठीक उस तितली जैसा जीवन है, हमारा। गौर कीजिए, एक तितली के जीवन-चक्र पर।एक वयस्क तितली अंडे देती है। अंडे से लार्वा निकलता है। जो एक लीचलीचा-सा, पिल्लू जैसा दिखता एक बेकार सी जान है, पत्तों को नोचता एक परजीवी जीवन व्यतीत करता है। इस जीवन से एक दिन वो परेशान हो जाता है, परजीवी जीवन से ऊब जाता है। अपने ही खाल का कोकून बना लेता है। एकांत वास में उसका रूप निखारने लगता है। उसकी ध्यान-अवस्था में उसका सौंदर्य किसी फूलसा खिल उठता है। एक दिन उसे आनंद का अनुभव होता है। अपने प्यूपा वाले कोकून को तोड़कर, वही कीड़े से तितली बन कर उड़ जाता है।
तितली के एक ख़ास गुण है। उसको कभी आप कचरे या गोबर पर मक्खियों जैसा भिनभिनाता नहीं देखेंगे। वह उड़-उड़कर एक फूल से दूसरे फूल पर बैठ जाती है। अथक वह फूलों से प्यार भरी बातें करती ही रहती है। जब वे फूल भी बेख़बर तितली के इश्क़ में पड़ जाते हैं, तब जा कर पेड़ों में फल आते हैं।
कितना समय आप ख़ुद के साथ बिताते हो? ये वक़्त ही आपके वैचारिक सौंदर्य को निखारता है, जिससे आपका व्यक्तित्व खिल उठता है। कब तक लार्वे की तरह पड़े रहोगे? ख़ुद से पूछना ये सवाल! इसका उत्तर भी ख़ुद को समझाना! मुझे या किसी और को अपने खिलने का रहस्य तुम नहीं समझा पाओगे। कोशिश भी मत करना, कोई समझ भी नहीं पाएगा। तुम्हें ही यह अनुभव अपने लिए सहेजना है।
जब तुम तितली बन कर बागों में उड़ोगी ना, तब हर फूल से प्यार बाँटना। तुम्हें तब किसी से नफ़रत होगी भी नहीं। प्यार सर्वत्र मिलेगा। तुम तितली बन कर उड़ना, मैं तुम्हें पकड़ने की कोशिश करूँगा। डरना मत मेरी तितली, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा। प्यार से पकड़ूँगा, थोड़ी उँगली से ज़ोर भी लगाऊँगा। तुम्हारी सुंदरता का एहसास जो करना है। फिर मैं तुम्हें उड़ने के लिये छोड़ दूँगा। मेरी बेटी, तुम तितली बनना! आज से मैं तुम्हें “तितली” ही बुलाऊँगा।
एक पिता की हैसियत से गिरने से पहले अपने बच्चे को सहारा मत दे देना। उसे गिरने देना, जहां तक उसका गिरने की इजाज़त दे सको। उस रोकना मत, बस संभलने में उसकी थोड़ी मदद कर देना, अगर लगे तो। वरना उसे बड़ा होने देना। तुम साक्षी बनना बस, अपने नियम-क़ानून उस पर थोपते मत रहना। ग़लत लगे तो अपनी पकड़ बढ़ाना, पर ख़्याल रहे उसे फड़फड़ाने देना। तुम बस उसे खूबसूरत बनते देखते रहना।
तुम्हारा पिता,
तुमसे से वादा करता है, तुम्हें वो इस काबिल बनाएगा कि एक देश की लोकतंत्र की गद्दी को चुनौती दे सको। तुममें इतनी ऊर्जा और ईमानदारी होगी की तुम इस लोक में इस तंत्र को सम्भाल सको। फिर तुम अपने जैसा इस देश की हर बेटी और उनके भाइयों को बनाना, ताकि वे तुमसे तुम्हारी गलती का हिसाब संवैधानिक तरीक़े से ले सके। अगर वे तुमसे काबिल निकले तो तुम गद्दी छोड़ देना। तुम उस गद्दी के काबिल नहीं हो, सहजता से मान लेना अपनी कमियों को। फिर उन कमियों को दूर कर पाओगी और तुम्हें अहंकार का कभी सामना नहीं करना पड़ेगा। तुम विपक्ष के साथ भी विकास कर सकती हो, ये भरोसा उन्हें हर पल जताते रहना। उनका सम्मान करना। बिटिया! तुम इस देश को सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाना। बेटा! तब आएगा अमृतकाल। तुम इंतज़ार ही मत करना, एक दिन बग़ावत भी करना। ये अमृतकाल तुम्हें हर पल बनाये रखना है। ये बताना हर पल में एक पूरा युग बसता है। सोचो आज तुम जहां भी हो, वहाँ सिर्फ़ इसलिए हो, क्योंकि तुम वहाँ ज़रूरी हो। तुम्हारा जीवन हर पल परफ़ेक्ट है, ये तुम हर पल याद रखना। तुम्हें कभी उदासी नहीं पास बुलाएगी, सुख की सखियाँ साथ निभाती रहेंगी।
अभी और बहुत काम बाक़ी हैं, जल्द मिलेंगे!
तुम्हारा,
सुक्कू!