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सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत

बढ़ते बलात्कार और सेक्स-संबंधी समस्याओं को लेकर मैंने फ़ेसबुक पर लिखना शुरू ही किया था, क्योंकि मुझे लगा कि सेक्स एक इंसानी जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसकी जानकारी के अभाव में अक्सर युवा लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है। इसलिए भी इस विषय पर प्रकाश डालना ज़रूरी है। मैंने भी अपने निजी जीवन में कुछ तकलीफ़ झेला और उसका समाधान आसानी से नहीं मिल पाया। 

हिंदू अख़बार के अनुसार - सरकारी आकड़ो में हर रोज़ बलात्कार के ८६ केस रिपोर्ट होते है। असली अंकों की कल्पना भी किसी सामान्य बुद्धि के समझ से परे होगी। हम रोज़ गुजरते हैं इस प्रताड़ना से और सब सेक्स संबंधी शिक्षा पर ऐसे चुप हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। निंदनीय!

मुझे उस समाज का हिस्सा होने में शर्म आती है, जहां ‘बलात्कार’ शब्द के व्यावहारिक प्रयोग को ‘संभोग’ से ज़्यादा मान्यता प्राप्त है। ऐसा लगता है समाज ने दोनों शब्द के अर्थों को समतुल्य मान लिया है और बलात्कार के कारण को संभोग मान बैठे हैं।

जीवन की शुरुआत संभोग की क्रिया से प्रारंभ होता है, और इस क्रिया को पाप समझना और समझाना वैसे ही है जैसे पैदा होने के बाद गर्भनाल को उसकी अनुपयोगिता के लिए गाली देना है। संभोग की क्रिया हमारे अस्तित्व का स्रोत और केंद्र है। उसको कमजोर करने से हमारी निजी और सामाजिक जीवन का पतन होता है।

अगर ध्यान करना अपने अस्तित्व को चेतन रूप में निहारना है, तो संभोग का अपमान ठीक विपरीत प्रक्रिया है, जो उसके मूल उद्देश्य का विपरीतार्थक है। आज-तक मेरा अनुमान था की जिस सामाजिक यातना से हम हर रोज़ रूबरू होते हैं, उसकी जड़ें धार्मिक प्रवृति की हैं। इसलिए मैं धर्म से नफ़रत करता आया था। पर मेरे नये अनुभव और अद्ध्यन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा की अंदर से इन जड़ों में कामुकता या हवस का वास है। इंसान की कामुक अक्षमता ही हिंसा की जननी है - सोच और व्यवहार दोनों ही स्तरों पर। दार्शनिक भाषा में कहें तो वीर्य ऊर्जा के असंतुलन और असंतुलित प्रयाग से अशुभ की समस्या उत्पन्न होती है।

अगर आप एक शांतिमय सामाजिक व्यवस्था की स्थापना का सपना पालते हैं तो सेक्स एजुकेशन पर अतिरिक्त ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है। मैंने निश्चय किया है कि यथा शीघ्र अपने इस सिद्धांत को विस्तृत रूप में एक किताब कि माध्यम से आप तक पहुँचाने का प्रयास करूँगा। इसके लिए मैं फ़िलहाल जिस साहित्य पर काम कर रहा था, उसे स्थगित कर रहा हूँ।

एक मनुष्य के जीवन में तीन प्रक्रिया हर पल चलती रहती है - सांस, मन और पाचन प्रक्रिया। एक जीवनकाल में ये कभी नहीं रुकती। इसके अलावा दो ऐसी प्रक्रिया है जो जाने-अनजाने हमारे कई फ़ैसलों को प्रभावित करती है - संभोग और धर्म।

अफ़सोस इस बात का है, कि मौजूदा समाज में ना कोई संभोग पर, ना धर्म पर सजगता से चर्चा करता है। दोनों ही प्रक्रिया जीवन के पक्ष में है। पर हम अपनी अज्ञानता से इसे अंधकार में धकेल कर कई व्यक्तिगत और सामाजिक समस्या को उत्पन्न करते हैं।

मैं मूवी देखने का शौक़ीन हूँ, इस विषय में चर्चा करने की प्रेरणा भी वहीं से मिली थी। मेरा पहला पोस्ट था - 

यहाँ मैंने ६ मूवी और सीरीज के imdb स्कोर को साझा किया है। 

 

तीन जो सेक्स एजुकेशन पर हैं, जिसे शायद ही किसी ने देखा होगा - 

Chhatriwali

Doctor G

Janhit Mein Jari

और तीन वेब-सीरीज जिसने खूब धूम मचाया -

The Family Man

Sacred Games

Mirzapur

 

तीनों वेब सीरीज में भद्दी अश्लील भाषा, माँ-बहन की गालीयाँ लगभग हर डायलॉग में प्रयोग किया गया है और इसे कला के नज़रिए से उपयुक्त समझा गया, दर्शकों के द्वारा भी। हाँ! परिवार के साथ नहीं देख सकते। पर अलग-अलग लगभग सब देखते हैं। और भी कुछ प्रचलित मूवी जैसे पुष्पा जिसे लोगों का भरपूर प्यार मिला, उसमें औरत के किरदार को द्वयम दर्जे का दिखाया गया। पब्लिक ने खूब ताली पीटी। 

मनोरंजन के दृष्टिकोण से मैं भी पब्लिक के साथ हूँ। मुझे भी ये सीरीज और मूवी ज़्यादा पसंद आयी हैं। 

ये सारी कलाभिव्यक्तियाँ इंटरनेट पर खुले आम मौजूद हैं। हमारे बच्चे यही देखना पसंद करते हैं, स्वाभाविक है, क्योंकि सेक्स में निहित आकर्षण प्राकृतिक है। आज हर बच्चे के हाथ में मोबाइल है। मेरी बेटी डेढ़ साल की उम्र से फ़ोन चलाना सिख गई है। कितनी देर और लगेगी जब वो ऐसे अश्लील सामग्री तक पहुँच जाएगी। शर्म से वो कभी सवाल तक नहीं करेगी, क्योंकि हमारे समाज में सेक्स पर बातचीत करने पर एक अनजाना प्रतिबंध लगा हुआ है। हमारी सभ्यता और संस्कृति सेक्स को ही अश्लील मान बैठी है। जिस देश में कामसूत्र लिखा गया, उसी देश की संस्कृति इसे अश्लील माने तो मामला चिंताजनक तो है।

सेक्स एजुकेशन पर बनी मूवी को मेरी बेटी भी देखना पसंद नहीं करने वाली, ठीक मेरी तरह। मुझे भी कोई ख़ास मज़ा नहीं आया था। कई जगह अभिनय और पटकथा हास्यास्पद लगी थी। आज भी हम आर्ची को फ़ोन और टीवी देखने से माना करते हैं। आगे भी हम उसे ऐसा करने से माना करेंगे, ग़ुस्सा भी करेंगे, तब वो छिप-छीपा कर देखेगी दोस्तों के साथ। अपने माता पिता से ज़्यादा उसे दोस्त चहेते हो जाएँगे। वैसे ही जैसे मैंने किया था।

माँ-बहन की गाली देना आसान है। पर दूसरों को इज़्ज़त देना मुश्किल है। उससे भी मुश्किल है ख़ुद की इज़्ज़त करना। बड़ी झूठी-सी ज़िंदगी है अपनी। शिक्षा मुश्किल है। स्कूल कौन बच्चा जाना चाहता है। मैं भी कभी ख़ुशी से स्कूल नहीं गया। पर पढ़ा तभी तो आक़लन करने की क्षमता आयी। बहुत पढ़ा - कुछ मजबूरन, कुछ स्वेक्षा से। अभी और भी बहुत कुछ पढ़ना और लिखना बाक़ी है। 

स्कूल के बाद इंजीनियरिंग कर ली, फिर नौकरी छोड़ी, सिविल सर्विसेज़ की दो बार निष्ठा से तैयारी की, फिर दर्शनशास्त्र से स्नातकोत्तर, अभी समाजशास्त्र से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा हूँ। अपनी जिज्ञासा से मनोविज्ञान का अद्ध्यन किया। इतना पढ़ कर भी असमंजस में हूँ कि क्या मैं अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा-दीक्षा दे पाऊँगा, या नहीं। सारे स्कूल-कॉलेज निजीकरण की दौड़ में दुकान बन गये हैं। इस समाज में सेक्स एजुकेशन से ज़्यादा तो सेक्स-संबंधी अश्लीलता पर ज़ोर दिया जाता है। कैसे कल्पना भी कर पाते हैं लोग की हमारी-आपकी माँ, बहन, बेटी सुरक्षित है। उनकी भी छोड़िये क्या हमारे बाप, भाई, बेटे ही सुरक्षित हैं?

शायद ही आप में से किसी ने ये मूवी देखी होगी, पर देखना चाहिए।

इसमें एक समस्या का ज़िक्र बार-बार हुआ है, कि अधिकांश पुरुष कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते। मैं अपने कुछ दोस्तों को जानता हूँ जो इसके प्रयोग से बचते हैं।

मैं जानना चाहता हूँ मेरे फ्रेंड लिस्ट में, ख़ास कर जो शादी-शुदा पुरुष हैं जिन्हें कंडोम ख़रीदने में शर्म आती हो अपना हाथ खड़ा करें। 

शायद ये सवाल ग़लत हो गया। क्योंकि जो इतने शर्मीले होंगे वे पब्लिक फोरम में क्यों आगे आयेंगे? आप अपने कमेंट में इसका समाधान भी सुझाएँ। मैं ये भी चाहूँगा की आप इस पोस्ट को शेयर भी करें। समाज में सेक्स एजुकेशन पर चर्चा ज़रूरी है।

शायद कुछ लोगों का जीवन आसान हो जाये, इसी कोशिश में फ़ेसबुक पर एक ग्रुप बना कर लिखना शुरू ही किया था, मगर किसी भी मेरी ये पहल रास नहीं आयी। आप ख़ुद ही पढ़ लीजिए।

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The current Tax Regime in India is not only regressive and complicated, but also more often than not it is punitive in nature. The flow of economy is too wild to tame. The contract between macro-economy and the micro-economy has been corrupted and its integrity is widely compromised.