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सबको “भगवान” की तलाश थी,
सब अपने-अपने सफ़र पर निकले।
कुछ को मिले,
वे ज्ञान बाँट रहे हैं।
कुछ को आभास हुआ,
वे शांति से अपना काम कर रहे हैं।
बाक़ी को भ्रम-मात्र है,
वे बस कर्मकांड निभा रहे हैं।
सत्य को छिपा कर,
सब अपना-अपना सच बता रहे हैं।
ख़ैर,
जो भी हो धर्म,
हर भक्त घमंड में चूर है,
अपने ही बच्चे से नहीं पूछता -
“बता मेरे बच्चे! तेरा धर्म क्या है?”
क्योंकि, कभी अपने ही बच्चे को,
नहीं बताया हर धर्म में, ख़ास क्या है?
क़िस्से और कहानियाँ ही तो हैं,
किसी ने पड़ोसी के क़िस्से,
भी अपने बच्चों को नहीं सुनाये।
सुना तो दो,
शिद्दत से वो कहानियाँ,
हर मज़हब जनाब,
एक हो जाएगा।