Skip to main content
Category
शार्टअप इंडिया

अभी-अभी एक मज़ेदार कॉल आया था - वडोदरा के किसी लॉ फर्म से। कुछ दिनों पहले शार्टअप इंडिया प्रोग्राम के तरफ़ से एक मेसेज आया था मेरे मोबाइल पर, संभवतः सरकार की तरफ़ से। मैंने भी दिये फॉर्म को फिल कर दिया था। उसके बाद कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं हुई थी। आज हुई।

वडोदरा के किसी लॉ फर्म की तरफ़ से कोई राहुल बोल रहा था। उसने मुझसे पूछा - “क्या आपका कोई स्टार्टअप है - सेजवेब प्राइवेट लिमिटेड के नाम से?”

अकसर मैं ऐसे कॉल को काट देता हूँ। अब तो कंपनी भी बंद हो चुकी है। पर शाम का समय था, कॉफ़ी पीते छत पर टहल रहा था। तो सोचा इनकी योजना के बारे में जान लूँ थोड़ा। सो, मैंने बोला - “हाँ। है॥”

उसने पूछा - “क्या आप सरकार की तरफ़ से चलायी जा रही - स्टार्टअप इंडिया प्रोग्राम के बारे में जानते हैं?”

“जी! थोड़ा बहुत।”

“क्या जानते हैं आप?”

“यही की सरकार स्टार्टअप के लिए सहायता देती है। फॉर्म भरते समय बताया गया था कि आर्थिक से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक की सहायता दी जाएगी। मोबाइल ऐप का आईडिया अच्छा लगा तो सीड मनी सरकार ही देगी।”

“जी सर! तो क्या आप इंटरेस्टेड हैं?”

“जी बिलकुल हैं।”

“तो ऐसा है कि सरकार की इस योजना का लाभ सबको नहीं मिलता। लगभग ७०% कंपनियों के आवेदन को सरकार छाँट देती है। सर, इस मामले में हमारा सक्सेस रेट ८५% का है। मतलब जो कंपनी हमारे साथ जुड़ी समझिए उनको तो मिल ही गया।”

“अरे वाह सर! आप लोग तो कमाल का काम कर रहे हैं। कितने लोगों का भला कर चुके हैं अभी तक।” - मैंने चहक कर उनकी तारीफ़ के पुल बांध दिये।

वे भी उत्साहित हो गये, बोले - “जी सर। हमारे क्लाइंट हमसे बहुत संतुष्ट हैं। आप हमारे वेबसाइट पर चेक कर सकते हैं। हमारा वेबसाइट है - www.आबराकाडबरा.com।”

“जी बिलकुल! अगली फ़ुरसत मिलते ही आपकी ही वेबसाइट खोलूँगा। अच्छा तो आपकी फ़ीस क्या है?”

“जी १०,००० रुपये प्लस टैक्सेस, बस।”

“बहुतय बढ़िया। तो सरजी, इसके बदले हमको कितना मिलेगा।” - धीरे-धीरे मैं बिहारी टोन बढ़ाने लगा।

“आपको कितना मिलेगा, मतलब?”

“अरी मतलब, सरकार की तरफ़ से हमको कितना मिलेगा सरकार।”

“सर सरकार की तरफ़ से आपको एक सर्टिफिकेट मिलेगा।”

“अच्छा तो ऊ सर्टिफिकेटवा का हम का करेंगे?”

“सर! उसी सर्टिफिकेट के दम पर तो आप स्टार्टअप इंडिया के प्रोग्राम में शामिल हो पायेंगे।”

“अचचचचचच्छा। बहुत ही बढ़िया पिलान है आपका आऊ सरकारवा का हमका बुड़बक बनावे के ख़ातिर। पहिले १०,००० प्लस टैक्स ले कर आप काटोगे, फिर सरकार उसके बाद अलग से काटेगी, बड़का बाबू अलग दे माँगेगा अपना हिस्सा…”

पता नहीं बीच में कब उसने कॉल काट दिया। हमारी तो बात ही अधूरी रह गई। पिछले २ दिनों से बज रहे राम-धुन की आवाज वापस ध्यान खींचने लगी - “हरे राम। हरे कृष्णा। कृष्णा-कृष्णा हरे-हरे….”