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वो काम अधूरा रह गया,
जिसे पूरा करने का वक़्त नहीं मिला।
वो काम बेहद ज़रूरी होगा,
क्योंकि समय से ज़्यादा,
उसे साँसों की ज़रूरत थी।
वो काम था, जिसमें मन कभी नहीं लगता,
उसका नाम मात्र ही काफ़ी है,
मन-तन-बदन में दर्द उठाने को,
फिर वो काम क्यों ज़रूरी था?
वो काम हर रोज़ करना था,
हर रोज़ ज़मीर धिक्कारता था,
जब भी मैं उस काम को टालता था,
कल ही तो पक्का वादा किया था,
जाने कब से वो “आज” नहीं आया,
अफ़सोस, आज भी वो अधूरा रह गया,
आज भी ‘कल से पक्का’ का वादा है॥
(ध्यान रखना हर नशेड़ी एक ना एक दिन अपना नशा यहीं छोड़ जाता है।)