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सेक्स एजुकेशन

अभी-अभी एक कॉल आया, एक पुराने दोस्त का जो अब एक प्राइवेट कॉलेज में लेक्चरर है। इन बातों पर भी गौर फ़रमाएँ-

“ये कॉल सही में आया था। या ऐसे ही कहानी लिखी थी।”

वह उस कॉल का ज़िक्र कर रहा था जिसकी चर्चा मैंने ‘कौशल भारत योजना’ में किया है।

“हाँ, रे। सही में आया था।”

“वो सब तो ठीक है। पर ये सेक्स एजुकेशन का क्या बखेड़ा खड़ा कर रखा है?”

“अरे भाई! मुझे लगता है इस विषय पर अच्छा शोध हो सकता है। पीएचडी में दाख़िला लेने वाला हूँ। कोई अच्छा रिसर्च टॉपिक तो होना ना चाहिए। इससे अच्छा क्या हो सकता है कि मैं सेक्स एजुकेशन जो काफ़ी उपेक्षित विषय है, उसके दार्शनिक, सामाजिक और मानसिक पहलू पर शोध करूँ। जिस तरह से सेक्स-संबंधी समस्याएँ समाज में है, मुझे ज़रूरी लगता है की इस पर पहल की जाये। मेरा तो ये भी अनुमान है की कई राजनीतिक और सामाजिक समस्याएँ इसी कमी के कारण मौजूद हैं आज के समाज में। इसलिए लोगों की राय ले रहा था। पर सब लोग तो बिलकुल चुप हैं।”

“तो तुम्हें क्या लगता है, आज तक किसी ने ये सब सोचा ही नहीं होगा। आज तक किसी ने सेक्स एजुकेशन की चर्चा ही नहीं की है।”

“ज़रूर की है, तभी तो ये आईडिया मेरे मन में आया।”

“तो तुमने लिटरेचर रिव्यू किया। क्या शोध कर लिया जो इतना ज्ञान बाँट रहे हो। एक तुम्हीं ज्ञानी हो क्या? सबको पता है जो तुम लिख रहे हो। नया क्या है इसमें?”

“भाई भड़क क्यों रहे हो। मैंने तो अभी तक सिनॉप्सिस भी तैयार नहीं किया। और ऐसा क्या लिख दिया? और अगर सबको पता है तो कोई कुछ करता क्यों नहीं है। तुम तो टीचर हो, तुमने क्या किया?”

“तुम्हें क्या पता मैंने क्या किया है। मैं भी छात्रों को जेंडर अवेयरनेस पर ज्ञान देता हूँ। दो किताब क्या पढ़ लिये तुम्हें लगता है, सबसे ज़्यादा ज्ञानी तुम्हीं हो गये। निश्चित हो जाते हो, एकदम आतंकवादी की तरह। तुम्हें कुछ सुनने की आदत ही नहीं है, इसीलिए कोई तुम्हारा दोस्त नहीं बनना चाहता, कोई तुम्हारे साथ काम नहीं करना चाहता। तो तुम्हें कोई कहेगा भी तो क्या कहेगा।”

“ठीक है भाई! ना करे। ना कहे। जहां तक हो सकेगा मैं वो करूँगा जो मुझे ठीक लगेगा।”

“मेरी मानो तो ये सब बकवास छोड़ो और कोई अच्छा टॉपिक चुनो। अध जल गगरी छलकत जाए।”

“जी, मालिक! अब नहीं छलकूँगा।”

मैंने कॉल काट दिया। वैसे अच्छा लगा, क्योंकि बाक़ी किसी ने तो गाली देने का भी कष्ट नहीं उठाया। फिर मुझे एहसास हुआ की शायद मैंने आप में से भी कई लोगों की भावना को आहत किया होगा। और ये बात भी सही है की मैंने कोई शोध तो किया नहीं है जो मैं ज्ञान बाटूँ। तो मैं माफ़ी माँगता हूँ। आइंदा से इस संदर्भ में, या ऐसे भी अब मैं फ़ेसबुक पर पोस्ट करने से परहेज़ ही करूँगा। आप सबका आभार।

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The current Tax Regime in India is not only regressive and complicated, but also more often than not it is punitive in nature. The flow of economy is too wild to tame. The contract between macro-economy and the micro-economy has been corrupted and its integrity is widely compromised.