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क़िस्मत या तो किसी तानाशाह की तरह होती है,

जो बेवजह ही हुकुम चला रहा है,

या किसी ज़िद्दी बच्चे की तरह,

जो अपने पिता से उड़ने की ज़िद्द कर रहा है,

या किसी प्रेमिका की तरह,

जो चाँद-तारे माँग रही है।

 

अरे! मानना ही है तो तुम क़िस्मत को ऐसे मानो,

की क़िस्मत तुम्हारी ग़ुलाम है,

पुश्तैनी नौकर है तुम्हारी, 

या तुम्हारी ही बंधुआ मज़दूर है,

या चिराग़ से निकले वो जिन्न है,

जो तुम्हारी माँग बस पूरी करने के इंतज़ार में जाने कब से बैठा है!

 

अपनी क़िस्मत तो तुम ऐसे लिखना,

जैसे कोई कवि रवि की कल्पना लिख रहा हो,

या कोई लेखक ईमानदारी से शब्द लिख रहा हो,

या कोई वैज्ञानिक अपना अनुमान लिख रहा हो,

या कोई शोधार्थी अपने तर्कों के लिए प्रमाण लिख रहा हो,

या कोई शायर ग़ज़ल लिख रहा हो,

या कोई प्रेमी अपना पहला प्रेम पत्र लिख रहा हो!

 

याद रखना तुम,

 

क़िस्मत से कहीं तुम धन-दौलत ना माँग लेना,

गलती से भी उसे भगवान मत बता देना,

क़िस्मत के भरोसे अपनी फ़रियाद लिए, 

कहीं तुम धर्मालय मत घुस जाना,

धर्म मुक्ति का रास्ता है, 

डरकर कहीं तुम किसी पंथ के ग़ुलाम मत बन जाना,

इस चक्कर में कहीं तुम ज्योतिष के पास मत चले जाना,

या अपने ही घरों में कोई नाजायज़ अपेक्षा मत पाल लेना।

 

मैंने देखा जिनके घर-बार बड़े होते हैं,

जिनके मकान आलीशान होते हैं,

जो सर्वगुण संपन्न और सुख-सुविधा में लिप्त होते हैं,

उनके घरों में अजनबियों को छोड़ो अपनों के लिए भी जगह नहीं होती,

वे तो आदमी को भी इंसान नहीं समझते,

अपने ही बच्चों से प्यार नहीं करते,

उन्हें भी वे संसाधन या किसी औज़ार की तरह देखते हैं,

बुढ़ापे का सहारा मान लेते हैं,

या अपनी मुक्ति का रास्ता उनकी सफलता में ढूँढने लगते हैं,

कुछ तो ऐसे भी होते हैं, जो सफलता तक को नहीं समझते,

पद, प्रतिष्ठा और पैसे में ही अपने बच्चों की सफलता तलाश लेते हैं,

भले वो पैसे चोरी का हो, वो प्रतिष्ठा झूठी हो और वो पद पर बेईमान बैठे हों!

 

मशहूर होना, सफलता की निशानी नहीं है,

सफलता की परिभाषा तो सरल है,

जब जिस वक़्त जो काम करने का मन करे,

उस वक़्त वो काम करने की आज़ादी और सुविधा हो,

ख़ुद की आज़ादी में सफलता है, 

जीवन की जीत में सफलता है,

ख़ुद की ग़ुलामी तो राजा से भिखारी सभी कर रहे हैं।

 

समझ सको तो यह भी समझना,

अगर आदमी, आदमी के काम नहीं आता,

तो वो इंसान किस काम का होता है,

अपनी तक़दीर तो इंसान लिखते हैं,

क़िस्मत के भरोसे तो कई हैवान बैठे हैं!