चलिए! हम फिर मिलते हैं।
मैं भाग जाना चाहता हूँ
कहीं दूर,
बहुत दूर,
सबसे से दूर,
ख़ुद से दूर,
मैं ख़ुद से भाग जाना चाहता हूँ।
बहुत दूर नहीं,
पल भर के लिए,
बस! मैं मुक्त होना चाहता हूँ,
एक लम्हा चेतन बन,
मैं अपना मन देखना चाहता हूँ।
एक दम भर,
मन वह भ्रम देखना चाहता है,
जिसे चेतना शरीर समझती है।
मैं उस आत्मा से भाग,
परमात्मा से सवाल करना चाहता हूँ,
एक और अनेक में अंतर क्या?
क्या तेरा क्या मेरा?
फिर क्यों इतना तांडव मचाते हो?
बात बात गुस्साते हो?
श्रापित आदम के बच्चों को,
और क्यों तड़पाते हो?
मैं इस तड़प से भाग जाना चाहता हूँ।