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कौशल भारत योजना

अभी अभी एक महिला मित्र का कॉल आया था। हम लोगों ने स्नातकोत्तर की पढ़ाई साथ में की थी। इस वार्तालाप पर गौर कीजिएगा।

“कैसे हैं, सुकांत जी?”

“जी, बढ़िया! बताइए कैसे याद किया?”

“आपका तो नेट निकल गया है ना?”

“जी।”

“मुझे आपकी थोड़ी मदद चाहिए।”

“बताइए मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूँ?”

मेरे और भी कई सहपाठी मुझसे राह चलते इस विषय पर मदद माँगते आये हैं। मैं हर बार सहर्ष तैयार हो जाता। हर बार उनसे कहता मेरे घर आ जायें, बैठ कर साथ में पढ़ेंगे। पर आया कोई नहीं। ख़ैर, मैडम की ये उम्मीद तो सबसे निराली थी।

“जी, क्या आप बता सकते हैं, नेट में कैसा-कैसा प्रश्न पूछा जाता है? जैसे दार्शनिक का नाम पूछते हैं, या उनकी रचना या सिद्धांत के बारे में।….”

मैडम जी ने सवालों की लड़ी लगा दी। मैं कुछ बोल पता, तब तक उन्होंने बताया की - “भैया! कुछ बताइए ना, आज १ः३० बजे से एग्जाम है।…”

मैं सुन कर सकते में आ गया। २ घंटे में जो विद्यार्थी राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा देने जाने वाला है, वो मुझ ग़रीब से पूछ रहा है - क्या सवाल आयेगा और वो क्या जवाब देगी?

मुझे ग़ुस्सा आ गया। मैंने बोला - “बहन! आप जाना, आँख बंद करना कोई एक ऑप्शन पर उँगली रखना और औका-बौक़ा तीन तड़ौक़ा कर लेना। कृपया आप नहा-धुआ के तैयार हो जायें। अगरबत्ती वग़ैरह जलायें, समय बचे तो थोड़ा होम-हवन या झाड़-फूंक करवा लें। मन को शांति मिलेगी। मुझ पर रहम करें। आपका वक़्त बहुत क़ीमती है।”

इस पर वो भड़क कर बोलीं - “इतनी सी बात पर इतना क्या ग़ुस्सा गये?”

अब मुझे मेरा समय क़ीमती लगने लगा, इसलिए मैंने कॉल काट दिया।

क्या हाल है भाई? आज के युवा छात्रों का। कमोबेश सबकी ऐसी ही हालत है। और मैं इनसे सेक्स एजुकेशन की बात करूँगा तो कैसे समझ पायेंगे, ये लोग। मुझे तो रोना आ गया।

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The current Tax Regime in India is not only regressive and complicated, but also more often than not it is punitive in nature. The flow of economy is too wild to tame. The contract between macro-economy and the micro-economy has been corrupted and its integrity is widely compromised.