Skip to main content

सुना है अक्सर लोगों को कहते,

कभी तो वक़्त बुरा है,

कभी क़िस्मत बुरी है,

कभी दुनिया बुरी है,

तो कभी नसीब खोटा है।

 

क्यों वे लोग नहीं कहते -

बुरा ही सही, ये वक़्त मेरा है,

फूटी ही सही, क़िस्मत ये मेरी है,

छोटी ही सही, ये दुनिया भी मेरी है,

नसीब के ये क़िस्से मैंने ही लिखें हैं।

 

अपनी ही दुनिया को हम अपनाना भूल गये हैं।

ख़ुद को क़बूल कर पायें, ये हिम्मत कहाँ है?

 

दुनिया परायी तभी तक है,

जब तक इसे अपना नहीं मान लेते।

 

सीधा सा गणित है,

बस मानना ही तो है।

Category

Podcasts