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बेरोज़गारी का आलम

देश में बेरोज़गारी इस कदर बढ़ गई है कि दो से तीन भिखारियों का रोज़ कॉल आता है। पढ़े लिखे बेरोज़गार और करेंगे भी क्या? या तो मंदिरों में घंट बजायेंगे या फिर दफ़्तर-दर-दफ़्तर अपना बायोडेटा ले कर चप्पल घिसेंगे। जब तक हिम्मत बचेगी सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करेंगे। जब चप्पल पूरी खिया जाएगी तब ग़लत रास्ते चल देंगे। कुछ पहले ही अपनी औक़ात नाप कर लग जाएँगे दो नंबर के धंधे में।

पापा ने दो गाड़ियाँ ख़रीदी, अपनी सैलरी के पैसों से। उनके सर्विस बुक्स में मेरे नंबर है। वहाँ से नंबर निकाल कर या ख़रीद कर कॉल करेंगे, बोलेंगे RSA Card बन कर आया है। सिर्फ़ ७५०० + टैक्स में ये आपका, और फिर अगले पंद्रह साल तक देश भर में कहीं भी आपकी गाड़ी ख़राब होगी तो हमारी कंपनी आपको सर्विस देगी। बड़ी अच्छी बात है।

मगर एक बार आमेजन के नाम से कुछ भिखारियों ने कॉल किया था, और मेरे पैसे डूब गये थे। पुलिस में शिकायत की, नतीजा पहली बार अख़बार में मेरे नाम छापा की किसी ने मुझे चूना लगा दिया। पढ़ने वाले भी खुश, लिखने वाले भी, और पैसा लेने वाले भी। पुलिस या प्रशासन से तो मदद की आस भी लगाना अपनी आत्मा-निर्भरता को ललकारना जैसा प्रतीत होता है। क्या आप आत्म-निर्भर नहीं हैं?, जो सरकार से उम्मीद लगाये बैठे हैं। लानत भेजती है केंद्र सरकार आपको तौफ़े में।

इसलिए कोई भी नतीजे पर पहुँचने से पहले मैंने शोरूम में जाँच पड़ताल की। वहाँ से पता चला ऐसा कुछ नहीं है। ये लोग पैसा ठगने के लिये ही कॉल करते हैं। उनकी मंशा पर शक तो था ही, अब यक़ीन हो गया था।

पर आज जो कॉल आया था, वो लगभग १३-१४ साल पुरानी मारुति के लिए आया था। जिसकी अब रिटायर होने की उम्र आ चुकी है। उस बुजुर्ग कार के लिए कोई पेंशन स्कीम लाते तो समझ भी आता। पर उसकी दांतों का इन्शुरन्स इस उम्र में अब कौन कराये जब सारे दांत ही झड़ गये हों। सो, मैंने विनम्रतापूर्वक मैडम से पूछा इतना जो पैसा लेंगी, ज़िंदगी में कभी हाल-चाल पूछने भी कॉल कीजिएगा या नहीं? मैडम भले घर की थी, उन्होंने ने क्षमा माँगी और कॉल काट दिया। उनका आभार।

अब भी जो खून ना खौला, खून नहीं वो पानी है। और कितना इंतज़ार करेगी पब्लिक? कब आएगी भारत की राजनीति से लोकतंत्र की ख़ुशबू? आज़ादी से जितना दूर जा रहे हैं, उनता ही ख़ुद के ग़ुलाम बने जा रहे हैं।

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The current Tax Regime in India is not only regressive and complicated, but also more often than not it is punitive in nature. The flow of economy is too wild to tame. The contract between macro-economy and the micro-economy has been corrupted and its integrity is widely compromised.