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तू ज़िंदा है, तो पहले ख़ुद को तू स्वीकार कर,
ज़िंदगी की जीत होगी, पहले ख़ुद से तो प्यार कर,
अगर कहीं है स्वर्ग, इस बात से इंकार कर,
है अगर ज़िद्द तो जन्नत का निर्माण कर!

ग़म-सितम के उन चार दिनों का आज तू बहिष्कार कर,
हज़ार दिन गुजर चुके, अब और ना तू इंतज़ार कर,
आज ही होगी इस चमन में बाहर,
रचकर कुछ बनकर तू ख़ुद से दीदार कर!

पहले कारवाँ की मंज़िलों का फ़ैसला तो कर,
हर हवा या लहर की तू परवाह ना कर,
एक कदम तू आज चल, एक कदम और कल,
मंज़िलों को छोड़कर आगे सफ़र की तैयारी तू कर!

देख स्वराज मिल चुका, ख़ुद का तू अभिषेक कर,
हर भेष धरकर आये जीवन तेरे द्वार पर,
धर्म-अधर्म छोड़कर, जात-पात तोड़कर,
संविधान को तू स्वीकार कर!

साहित्य, भूगोल, अर्थ के ज्ञान से आज तू शृंगार कर,
देख विज्ञान बढ़ रहा वक्त की पुकार पर,
ज़रूरतों को जानकर, बाज़ार की बुनियाद तू तैयार कर,
बहुत हुई उलझने, अब जीवन का तू चुनाव कर!

लोकतंत्र आज है, इस सच का तू एतबार तो कर,
हक़ का पत्र लेकर तू अब ना और माँगकर,
यह लोक, यह तंत्र तेरा है,
पहले इसकी कल्पना तो कर!