एक ऑफिस का फ्लोर, फ्लोर पर कंप्यूटर,
कई लोग उसके सामने बैठे हैं,
कोशिश है चल जाए,
आपने-आपने गृहस्ती का कैलकुलेटर।
बैठे हैं सब काम कर रहे हैं,
बैठा हूं मैं भी,
देखता हूं मशीन,
और मशीनों के इशारे पर नाचता इंसान।
अरसे से सुबह की धूप नहीं देखी,
ओस से भिंगे घास पर दौड़ा नहीं,
दिन गुजर गए जब रात साफ खामोश हो,
और खुले आसमान में चांद और बादल की शरारत नहीं देखी।
नेचर के नज़ारे अब वॉलपेपर बन गए हैं,
एक छोटे से डब्बे में दुनिया सिमट गई है,
दोस्ती और रिश्ते भी अब वर्चुअल बन गए हैं,
फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा पर जवानी से बचपन फंस गई है।
लोग कहते हैं, गप मारना औरतों का काम है,
मशीनें आज ये काम भी उनसे बेहतर कर रही हैं,
कहते हैं उनके पेट में बातें नहीं पचती,
मशीनों का हाजमा भी कुछ बेहतर नहीं है।
इस मशीनी दुनिया को देख कर,
एक बार तो रोया होगा खुदा भी,
चिल्लाया होगा जी ले जो दो पल दिए हैं,
और जवाब आया होगा -
"इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं"।।