आधुनिक स्वराज की कल्पना!
सोचकर देखिए! एक PPP मॉडल में गाँव बसाने की बात लिखी है मैंने, जहां सरकार गाँव चलाएगी। पब्लिक में भी जहां लोक होगा, और प्राइवेट में भी लोक ही रहेगा जो तंत्र का संचालन करेगा। कई गवर्नमेंट स्कीम से फण्ड उठाया जा सकता है। कई तरह के निवेशों पर सरकार से कर माफ़ करवाया जा सकता है। उस गाँव में बुनियादी हर सेवा जनहित में जारी होगी। एक सामूहिक रसोई होगी, बाक़ी भी रेस्टोरेंट होंगे। एक ही प्रांगण में विद्यालय से लेकर महाविद्यालय होंगे। रोज़गार के नये नये आयाम खुलेंगे। स्कूल और कॉलेज में कभी कोई फ़ीस नहीं ली जाएगी, क्योंकि उसका खर्चा पहले ही लोक उठा चुका होगा। बेईमानी के मौक़े ही कम हो जाएँगे तो लोकतंत्र ख़ुद ही ईमानदार हो जाएगा। कब तक हम उसी कल्पना से लड़ते रहेंगे जो हमारे पूर्वजों ने कभी देखे थे? नयी कल्पनाएँ कहाँ से आयेंगी अगर हर साहित्यकार डरा रहेगा, क्योंकि हर क्षण उसका अस्तित्व ख़तरे में है।