पिता की प्रसव पीड़ा
एक हफ़्ते तक बहू भी हॉस्पिटल में भर्ती रही। बेटा, दादा, दादी और बाक़ी परिवार के लोग सब कुछ सम्भालते रहे। बेटे ने देखा बाक़ी सारे मरीज़ों का भी ऑपरेशन ही हुआ। क्या जब ऑपरेशन का विकास नहीं हुआ था तब बच्चे नहीं होते थे। सिर्फ़ पैसे के लिए डॉक्टर मरीज़ से खेलता रहता है - वह सोचता रहा। डॉक्टर ने बिल से भी ज़्यादा पैसों की माँग की। नर्सों ने बक्शीश माँगने में भी कोई शर्म नहीं दिखायी। महँगी से महँगी दवाई मंगवायी गयी। पैसे का मोह बहुत नहीं था, बेटे में। पर सब के लालच को देख कर वह सर पीट कर सोच रहा था - “ऐसे समाज में क्यूँ उसने बच्चा पैदा कर दिया।”