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बेटी! तुम ज़रूर पढ़ना!

तुम्हारा पिता, तुमसे से वादा करता है — तुम्हें वो इस काबिल बनाएगा कि एक देश की लोकतंत्र की गद्दी को चुनौती दे सको। तुममें इतनी ऊर्जा और ईमानदारी होगी की तुम इस लोक में इस तंत्र को सम्भाल सको। फिर तुम अपने जैसा इस देश की हर बेटी और उनके भाइयों को बनाना, ताकि वे तुमसे तुम्हारी गलती का हिसाब संवैधानिक तरीक़े से ले सके।

बेरोज़गारी का आलम

देश में बेरोज़गारी इस कदर बढ़ गई है कि दो से तीन भिखारियों का रोज़ कॉल आता है। पढ़े लिखे बेरोज़गार और करेंगे भी क्या? या तो मंदिरों में घंट बजायेंगे या फिर दफ़्तर-दर-दफ़्तर अपना बायोडेटा ले कर चप्पल घिसेंगे। जब तक हिम्मत बचेगी सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करेंगे। जब चप्पल पूरी खिया जाएगी तब ग़लत रास्ते चल देंगे। कुछ पहले ही अपनी औक़ात नाप कर लग जाएँगे दो नंबर के धंधे में।

सेक्स एजुकेशन

“अरे भाई! मुझे लगता है इस विषय पर अच्छा शोध हो सकता है। पीएचडी में दाख़िला लेने वाला हूँ। कोई अच्छा रिसर्च टॉपिक तो होना ना चाहिए। इससे अच्छा क्या हो सकता है कि मैं सेक्स एजुकेशन जो काफ़ी उपेक्षित विषय है, उसके दार्शनिक, सामाजिक और मानसिक पहलू पर शोध करूँ। जिस तरह से सेक्स-संबंधी समस्याएँ समाज में है, मुझे ज़रूरी लगता है की इस पर पहल की जाये। मेरा तो ये भी अनुमान है की कई राजनीतिक और सामाजिक समस्याएँ इसी कमी के कारण मौजूद हैं आज के समाज में। इसलिए लोगों की राय ले रहा था। पर सब लोग तो बिलकुल चुप हैं।”

सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत

अगर ध्यान करना अपने अस्तित्व को चेतन रूप में निहारना है, तो संभोग का अपमान ठीक विपरीत प्रक्रिया है, जो उसके मूल उद्देश्य का विपरीतार्थक है। आज-तक मेरा अनुमान था की जिस सामाजिक यातना से हम हर रोज़ रूबरू होते हैं, उसकी जड़ें धार्मिक प्रवृति की हैं। इसलिए मैं धर्म से नफ़रत करता आया था। पर मेरे नये अनुभव और अद्ध्यन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा की अंदर से इन जड़ों में कामुकता या हवस का वास है। इंसान की कामुक अक्षमता ही हिंसा की जननी है - सोच और व्यवहार दोनों ही स्तरों पर। दार्शनिक भाषा में कहें तो वीर्य ऊर्जा के असंतुलन और असंतुलित प्रयाग से अशुभ की समस्या उत्पन्न होती है।