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यूँ डुबकर किसी दिन,
ना हम सूरज कहलाएँगे,
हम फिर उगकर आयेंगे,
और तब सूरज कहलाएँगे।
यूँ मुरझाकर इक रोज़,
ना हम गुलाब कहलाएँगे,
हम जब जब ख़ुशबू फैलाएँगे,
हम तब तब गुलाब कहलाएँगे।
यूँ बहते हुए हर पल भी,
ना हम हवा कहलाएँगे,
हम जब जीवन दे पायेंगे,
हम तब हवा कहलाएँगे।
एक दिन उगेगा सूरज भी,
उस दिन गुलाब भी खिलेगा,
और हवा तब ख़ुशबू से भर देगी जीवन,
वह दिन कभी तो आयेगा।
तब तक,
चल हवा के साथ चल तू,
ख़ुशबुएँ ले साथ चल तू,
उठ गगन में तू घटा बन,
बरस धरा पर तू बन जीवन।