कुरुक्षेत्र में अर्जुन निहत्था आया,
गांडीव वह घर भूल आया,
कृष्ण ने कहा चल बाण उठा,
निशाना लगा,
धर्म कहता है,
अपने परायों में भेद ना कर,
तू जा कुरुक्षेत्र में प्रियजनों का भी संघार कर,
यही धर्म है तेरा,
जा लड़ मर,
तू क्षत्रिय है, भूल मत!
वह शूद्र है,
जो धर्म नहीं निभाता,
नरक जाता है,
देख महाभारत की रणभूमि में,
तू धर्म की रक्षा कर,
जीत से अपना शृंगार कर,
योद्धा है तू मत भूल!
गीता का सार है,
तू कर्म कर,
फल की ना तू चिंता कर,
ना ही उस पर कोई चिंतन कर,
सामने जो है,
वही तेरा दुश्मन है,
तू जा उसका वध कर।
अफ़सोस! इस भारत में अर्जुन निहत्था आया,
उसे क्या पता था,
वह गीता या द्रौपदी की नहीं,
सीता की रक्षा करनी है,
राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं,
बाक़ी सब नामर्द हैं,
फिर क्यों राम राज्य में,
सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी?
अब राम तो आए नहीं,
आग से सीता को बचाने,
अर्जुन क्या उखाड़ लेता,
तो उसने बाबरी मस्जिद गिरा डाली,
सीता की परीक्षा तो महाभारत से पहले ही हो चुकी थी,
द्रौपदी को भी कौन बचा पाया?
गीता कैसी है?
कौन पढ़ता है?
धर्म क्या है?
कौन जानता है?
राम के राज्य में जब सीता सुरक्षित नहीं थी,
इस भारत में कौन बचेगा?
ना गीता के सार से,
ना कृष्ण की पुकार से,
ना कौरवों की ललकार से,
ना ही कुरुक्षेत्र के हाहाकर से,
अर्जुन मजबूर है,
वह गांडीव ही घर भूल आया,
कैसे लड़ेगा?
कैसे अब वह धर्म निभाएगा?
क्या वह अपनी ही रक्षा कर पाएगा?
कृष्ण को समझ पाये,
इसके लायक़ वह है भी कहाँ?
द्रोणाचार्य को अंगूठा पसंद है,
भीष्म कैसे पितामह हैं?
भाइयों की लड़ाई में पक्षपात करते हैं,
कैसे मर्यादा बची है?
जिसकी रक्षा अब संभव है?
जब हर घर बेटियों से पहले,
तो बेटों की विदाई हो रही है,
जीत गया तो ठीक,
वरना कुंती का क्या?
सुना है कर्ण भी उसी की संतान है।
अब बेचारे कृष्ण!
किसे उपदेश देंगे?
देकर भी क्या उखाड़ लेंगे?
अर्जुन तो गांडीव ही घर भूल आया।