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मैं भाग जाना चाहता हूँ

कहीं दूर,
बहुत दूर, 
सबसे से दूर,
ख़ुद से दूर,
मैं ख़ुद से भाग जाना चाहता हूँ।
बहुत दूर नहीं,
पल भर के लिए,
बस! मैं मुक्त होना चाहता हूँ,
एक लम्हा चेतन बन,
मैं अपना मन देखना चाहता हूँ।
एक दम भर,
मन वह भ्रम देखना चाहता है,
जिसे चेतना शरीर समझती है।
मैं उस आत्मा से भाग,
परमात्मा से सवाल करना चाहता हूँ,
एक और अनेक में अंतर क्या?
क्या तेरा क्या मेरा?
फिर क्यों इतना तांडव मचाते हो?
बात बात गुस्साते हो?
श्रापित आदम के बच्चों को,
और क्यों तड़पाते हो?
मैं इस तड़प से भाग जाना चाहता हूँ।
तुमसे दूर,
ख़ुद से दूर,
सबसे से दूर॰॰॰

चल भाग यहाँ से!
भाग भागकर तो यहाँ आया था,
अब भागकर कहाँ जाएगा?
जहां भागकर जाएगा,
ख़ुद को ही पाएगा,
क्या यह शरीर तेरा नहीं?
या यह काल पराया है?
नित्य मुक्त है तू,
क्या तूने पढ़ा नहीं?
ब्रह्म है तू,
क्या तू जानता नहीं?
कभी सोचा है, 
एक लेखक से फुटकर,
किरदार कहाँ जाते हैं?
सोचो क़िस्से बदलते हैं?
या कहानी?
लेखक से फुटकर किरदार,
एक पाठक से मिलने चलते हैं,
यात्रा पूरी हुई,
चलिए! हम फिर मिलते हैं।
 

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The current Tax Regime in India is not only regressive and complicated, but also more often than not it is punitive in nature. The flow of economy is too wild to tame. The contract between macro-economy and the micro-economy has been corrupted and its integrity is widely compromised.