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इक दिन आईना देख,
मैं भड़क उठा,
कहने लगा,
सामने जो व्यक्ति है,
जाहिल है, 
देखो तो,
कितना घिनौना दिखता है?

मैं उस आईने पर,
कालिख मल आया,
काली सी सूरत,
वह जहालत,
अब दिखती नहीं,
अब पूरा नजारा ही काला है,
क्या मैं गोरा हो गया?

यह सवाल बिना पूछे ही,
मैं स्कूल चला गया,
वहाँ मेरा परिचय हुआ,
एक नये आईने से,
उस दर्पण में झांककर देखा,
पद, पैसा और प्रतिष्ठा दिखी,
साहब मिले, मिलकर क्या ख़ुशी हुई?

यह सवाल कभी उठा ही नहीं,
जवानी कॉलेज जा पहुँची,
क्यों? पता भी नहीं,
सबने कहा विकास करो,
आत्मनिर्भर बनो,
कुछ नहीं तो एक नौकरी ही कर लो,
जीवन क्या इतने से ही समृद्ध नहीं?

समृद्धि की कोई एक परिभाषा तक नहीं,
कभी सुख है, तो कभी दुख,
रोता, सोता, जागता, हँसता,
हर दिन आईने से हंसकर मिलता,
उसे अब कोई शिकायत भी नहीं,
पर मायूसी झांकती है,
प्रतिबिंब में क्या जीवन नहीं?

आईना ही है, सत्य तो नहीं,
फिर मैंने अपनी शक्ल कहीं देखी भी नहीं,
विज्ञान का वरदान आईना है,
पर दर्शन की कोई विधि नहीं,
ना सुख का समानार्थी, 
ना दुख पर्यायवाची,
आनंद अभी यहाँ नहीं, तो कहीं नहीं!

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The current Tax Regime in India is not only regressive and complicated, but also more often than not it is punitive in nature. The flow of economy is too wild to tame. The contract between macro-economy and the micro-economy has been corrupted and its integrity is widely compromised.