Day 5: 14 June, 2024
आत्म निर्भरता के नाम पर समाज में एकल परिवार की कल्पना का विकास देखने को मिला है। अर्थ की सबसे छोटी इकाई भी आज संकट में है। इसका अंदाजा लगाना भी आसान ही है, अपने ही घर आँगन में हम झांककर देख सकते हैं। संभवतः, हमें एक घबराहट दिखेगी, स्कूल, कॉलेज और ऑफिस के बीच हमारा घर ही सराय बन चुका है। कुछ भ्रम और संशय के साथ कुछ बुनियादी ख़तरे भी नज़र आ सकते हैं। समाज का आईना उस वक़्त का साहित्य ही तो होता है। आज हमारे बीच जहां एनिमल है, वहीं गुठली भी है। पंचायत, गुल्लक, कोटा फैक्ट्री, टीवीएफ़ aspirants, जैसे ना जाने कितने साहित्य की आज जवानी दीवानी हुई पड़ी है। हमारे घर आँगन की जटिलताओं और संभावनाओं से ये साहित्य हमारा सामना करवा जाते हैं। तभी तो हमें पसंद आते हैं। इन साहित्यों में भी वह आईना है जो साहित्य हमें दिखाता है। कोटा में घुट रहे छात्रों की विडंबना भला राजिस्थान की गर्मी झेल रहे उन छात्रों के अलावा और कौन जानता है?