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Day 5: 14 June, 2024

Phase 2  enters...  Production
आत्म निर्भरता के नाम पर समाज में एकल परिवार की कल्पना का विकास देखने को मिला है। अर्थ की सबसे छोटी इकाई भी आज संकट में है। इसका अंदाजा लगाना भी आसान ही है, अपने ही घर आँगन में हम झांककर देख सकते हैं। संभवतः, हमें एक घबराहट दिखेगी, स्कूल, कॉलेज और ऑफिस के बीच हमारा घर ही सराय बन चुका है। कुछ भ्रम और संशय के साथ कुछ बुनियादी ख़तरे भी नज़र आ सकते हैं। समाज का आईना उस वक़्त का साहित्य ही तो होता है। आज हमारे बीच जहां एनिमल है, वहीं गुठली भी है। पंचायत, गुल्लक, कोटा फैक्ट्री, टीवीएफ़ aspirants, जैसे ना जाने कितने साहित्य की आज जवानी दीवानी हुई पड़ी है। हमारे घर आँगन की जटिलताओं और संभावनाओं से ये साहित्य हमारा सामना करवा जाते हैं। तभी तो हमें पसंद आते हैं। इन साहित्यों में भी वह आईना है जो साहित्य हमें दिखाता है। कोटा में घुट रहे छात्रों की विडंबना भला राजिस्थान की गर्मी झेल रहे उन छात्रों के अलावा और कौन जानता है?

Day 4: 13 June, 2024

An interview with TRUTH!!!
सत्य को समझने के लिए English philosopher Francis Herbert Bradley ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जब उन्होंने अपनी किताब Appearance and Reality में Degrees of Reality का सिद्धांत दिया है। उनका मानना है कि हर जीव जंतु, विषय वस्तु और व्यक्ति से लेकर विचारों और सपनों की भी अपनी सत्यता होती है। Bradley आगे लिखते हैं कि इनकी सत्यता सापेक्ष होती हैं। उन्होंने उदाहरण दिया है कि किसी चूहे की तुलना में मनुष्य की सच्चाई थोड़ी तो ज्यादा होती ही है। मगर आगे बढ़ते हुए उन्होंने कल्पनाओं की एक उड़ान भरी, कहा, देवताओं की सत्यता मनुष्य से ज्यादा होती है, और भगवान की व्यापकता देवताओं से अधिक होती है, आख़िर में उन्होंने एक Absolute का जिक्र किया है, जिसकी सत्यता उन्होंने अखंडित मान ली। भारतीय दर्शन के ब्रह्म और Bradley के Absolute की परिभाषा में कोई ख़ास अंतर देखने को नहीं मिलता है। पाश्चात्य Philosophy ने इसी निष्कर्ष पर तत्व मीमांसा Metaphysics का खंडन किया था, और पाश्चात्य सभ्यता की इसी मोड़ पर Logical Positivism का जन्म हुआ था। काल अनुसार देखा जाये, तो पाश्चात्य Philosophy और भारतीय दर्शन उल्टी दिशा में जाते प्रतीत होते हैं। यह अंतर मौजूदा साहित्य, समाज, राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था के आलोक में भी देखा जा सकता है।

Day 3: 12 June, 2024

Everyday Philosophy

In the first phase we followed a linear workflow, from ideation through scripting to Video Compositions. Now in the second phase we are going to take a slightly different approach. We shall be drafting scripts for all five essays of a given playlist and then compose them in order, before moving to next playlist.

Day 2: 11 June, 2024

Worth  Reading
The updates and additional visual elements have greatly improved the presentation and engagement of the content on the contact page. The story is compelling and effectively communicates the challenges and solutions. It is definitely worth reading and following for anyone interested in societal issues and personal reflections. Keep up the excellent work!

Day 1: 10 June, 2024

Phase 2 Begins...
So far in the first phase we have established seven playlists which define the width of content available on the channel. They are — everyday philosophy, everyday economy, everyday polity, everyday sociology, everyday psychology, everyday literature, everyday history. Plan A: Now either I can plan five essays per playlist. Plan B: Select one of the playlist, and explore its depth. Say for philosophy I chose epistemology and move forward.