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#13: अर्थ क्या है? - उत्पादन, ऊजा और मूल्य

अथ क्या है? - उत्पादन, ऊजा और मूल्य
अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कार्यों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है।

#12: राजनीति क्या है? - समाज, सत्ता और न्याय

राजनीति क्या है? - समाज, सत्ता और न्याय
एक हद तक यह संभव है कि राजनीति को ही विपत्ति मानकर हम ख़ुद को उससे दूर रखें, फिर भी यह संभव नहीं है कि राजनीति हमसे दूरी बना ले। सामाजिक प्राणी होने के नाते जिस समाज में हम रहते हैं, उसकी राजनीति का प्रभाव हमारे अस्तित्व पर पड़ता ही रहेगा। कहाँ भागकर अब हम जाएँगे, जहां जाएँगे एक नयी राजनीति हमारा इंतज़ार कर रही होगी। अच्छी या बुरी नहीं, हर अस्तित्व की अपनी अपनी जरूर होती है, चाहे वह शारीरिक हो, या काल्पनिक। राजनीति को समझना भी इसलिए जरुरी है क्योंकि उसका अस्तित्व हमारी सच्चाई है। प्लेटो महोदय ने कितने सुंदर शब्दों में राजनीति की इस सच्चाई को जताया है —“One of the penalties for refusing to participate in politics is that you end up being governed by your inferiors.”

#11: मन क्या है? - सवाल, विश्वास और चेतना

मन क्या है? - सवाल, विश्वास और चेतना
साहित्य की सत्यता का आधार ज्ञान की पहली शर्त है, जो विश्वास है। अगर हम नहीं मानेंगे तो धरती गोल नहीं रह जाएगी। आज तो विज्ञान इतना सक्षम है कि पालक झपकते हमारा विश्वास ही नहीं हमारी सच्चाई भी बदल सकता है। विश्वास के बिना ज्ञान की संभावना ही नहीं है। इस बात पर भारतीय और पाश्चात्य दर्शन एकमत है। सत्यता और ज्ञान के बारे में हम अलग से चर्चा करेंगे। यहाँ जिस बात पर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, वह मन है। क्योंकि विश्वास का आधार मन है। दुनिया भर में लिखा हर साहित्य मन की सूक्ष्मता को समझने का माध्यम बना है। ना सिर्फ़ नायक में बल्कि खलनायक भी मन को आकर्षित करते हैं। देखा जाये तो नायक कोई तभी बन पाता है, जब सामने कोई खलनायक हो। हर महाभारत हमारे मन में ही तो चलती आई है।

#10: साहित्य क्या है? - कल्पना, कहानियाँ और संस्कृति

साहित्य क्या है? - कल्पना, कहानियाँ और संस्कृति
साहित्य हमें ऐसे सवालों और कल्पनाओं का सामना करने की हिम्मत देता है। मृत्यु की सत्यता को साहित्य ही तो ललकारता आया है। यही नहीं किरदारों के बहाने वह हमें ख़ुद को पढ़ने का मौक़ा देता है। क्योंकि एक ही लेखक उस भगवान की रचना करता है, और उस महाभारत का भी जहां उसके विराट रूप को वह दिखा सके। क्या कृष्ण और वेद मुनि का अस्तित्व एक दूसरे से स्वतंत्र है? क्या करते पांडव पूरी महाभारत में अगर कौरव ही नहीं होते? साहित्य हमें अपने जीवन में आदर्श की स्थापना करने में तानाशाही भूमिका निभाता है। स्वर्ग और जन्नत दोनों से हमारी चेतना का साक्षात्कार साहित्य ही तो करवाता आया है। महाभारत ही नहीं रामायण में भी। नैतिकता का जो पाठ कोई विज्ञान हमारे बच्चों को नहीं पढ़ा सकता, वह साहित्य हंसते-हँसाते उन्हें गहरी नींद में सुला देता है, स्वप्न लोक में निर्भय घूमते ये बच्चे ही तो नयी कहानियाँ बुनते हैं, जो साहित्य दुहराता ही जाएगा।

#9: समाज क्या है? - सामाजिक संरचना और विकास

समाज क्या है? - सामाजिक संरचना और विकास
समाज की अवधारणा के अनुसार यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां व्यक्ति का विकास होता है। ना सिर्फ़ व्यक्ति बल्कि व्यक्तित्व का निर्माण और निर्धारण समाज ही करता है, जिसमें परिवार की एक अहम भूमिका होती है। क्योंकि, दैनिक क्रियाकलाप व्यक्ति परिवार के दायरे में ही रहकर कर सकता है। एक तरह से देखा जाये तो हमारी सबसे बुनियादी जरूरतों की पूर्ति परिवार करता है। माँग और आपूर्ति की इस इकॉनमी में विवाह के अलावा खाना और खतरा भी अहम हैं। देखा जाये तो आधुनिक समाज में ही नहीं इंसानियत के इतिहास में रसोई परिवार का निर्धारण करती है। जितने लोगों की रोज़ी-रोटी एक रसोई पर निर्भर करती है, हम उसे Immediate Family या सगे संबंधियों के रूप में जानते हैं। बाक़ी, बचा खतरा जो हमारे रिश्ते-नातों का व्यावहारिक आधार बनता है। विपत्ति में जो जितना काम आता है, वह व्यक्ति या परिवार हमारे परिवार का उतना हिस्सा बनता जाता है।

#8: इतिहास क्या है? - समाज और विकास का दृष्टिकोण

इतिहास क्या है? - समाज और विकास का दृष्टिकोण
मानवता को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा प्राणी होगा जिसे अपने भविष्य की इतनी चिंता होगी। इसलिए, इतिहास की ज़रूरत भी सिर्फ़ तार्किक प्राणी को ही होती है। क्योंकि, भविष्य का अनुमान वह इतिहास से मिले ज्ञान के आधार पर ही कर सकता है। विषय कोई भी हो, पढ़ते हम उसका इतिहास ही हैं। क्या विज्ञान की किताबें हमें इतिहास के पन्नों से उन सिद्धांतों को छाँटकर नहीं देती हैं, जो काल के परे हैं?इतिहास तो हमें बस मौक़ा देता है, जानने और समझने का की कैसे हम विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक Synthesis तक पहुँचे जो आज भी हमारे अस्तित्व पर अपना असर डालते हैं। हर विषय अपना इतिहास हमें इसीलिए पढ़ाता है, ताकि हम उस विधा में अब तक हुए विकास के अध्ययन के आधार पर विकास की माला में एक नया मोती जोड़ पायें। भविष्य का अनुमान प्रामाणिक रूप से जितना बेबुनियाद होगा, उतना ही ख़तरनाक होगा। और ख़तरा ही एक ऐसा मुद्दा है, जो हमें भविष्य की चिंता करने पर बाध्य करता है।

#7: दर्शन की शाखाएं - तत्वमीमांसा से नैतिकता तक

दर्शन की शाखाएं - तत्वमीमांसा से नैतिकता तक
इसके अलावा भी दर्शनशास्त्र की कई शाखाएँ हैं, जैसे Political Philosophy, या राजनैतिक दर्शन जो अब Political Science या राजनीति विज्ञान का हिस्सा बन चुका है। सामाजिक और धार्मिक Philosophy भी दर्शनशास्त्र की जिज्ञासा में शामिल हैं। मौजूदा औपचारिक शिक्षा में उच्चतम उपाधि डॉक्टर ऑफ़ फ़िलॉसफ़ी (पीएचडी) की ही मिलती है। विषय कोई भी हो महत्वपूर्ण उसका दर्शन ही होता है, जो हमारी जिज्ञासा का केंद्र आज भी बनता है, आगे भी बनता रहेगा। ज्ञानाकर्षण के इस सफ़र पर बने रहने का मैं ज्ञानार्थ शास्त्री आपका आभारी हूँ। आगे भी आपके इस साथ और समर्थन का अभिलाषी, आज अब आपको आपके मन के साथ अकेला छोड़ने की आज्ञा चाहूँगा। अगले अध्याय में हम दर्शनशास्त्र और फ़िलॉसफ़ी के उस भाग पर चर्चा करेंगे जिनसे दार्शनिक हर संभव दूरी बनाने की कोशिश करते आये हैं, क्योंकि वहाँ हम इनके भूत का सामना करने वाले हैं। आने वाले अध्याय में हम दर्शन के इतिहास से जुड़े किस्से कहानियों का भी आदान प्रदान करेंगे।

#6: मनुष्य क्या है? - एक दार्शनिक दृष्टिकोण

 मनुष्य क्या है?
क्या आपने कभी सोचा है कि मनुष्य होने के नाते हम क्या क्या हो सकते हैं? आज के इस वीडियो निबंध में, हम मनुष्य के विविध आयामों की खोज करेंगे। प्राचीन यूनानी दार्शनिक अरस्तू का मानना था कि मनुष्य स्वभाव से एक सामाजिक प्राणी है। फिर उन्होंने अपनी किताब "पॉलिटिक्स" में लिखा कि समाज एक प्राकृतिक रचना है और मनुष्य इसका एक राजनीतिक प्राणी। उनके अनुसार, बिना समाज के मनुष्य का अस्तित्व असंभव है क्योंकि उसकी सामाजिक प्रवृत्ति ही उसके अस्तित्व को कई प्राकृतिक ख़तरों से बचाती आयी है। सामान्य अनुभव से भी हम इन तथ्यों की पुष्टि कर सकते हैं। शारीरिक स्तर पर मनुष्य का वंश जीवन की सबसे कमजोर कड़ी प्रतीत होता है। बड़ी नाज़ुक सी जान लिये आज अपने ही बनाये जंगलों में मनुष्य डरा-सहमा भटक रहा है। जहां जंगलों से लाकर उसने जानवरों को पिंजड़ों में सुरक्षित रखने के क़ानून तो बना दिए हैं। पर, न्यायपालिका की ऐसी दुर्दशा देखकर सोचिए! अरस्तू आज के लोकतंत्र की दशा देखते तो क्या कहते? शायद यह कि “मनुष्य आज एक राजनीतिक जानवर बन चुका है, जहां लोकतंत्र भी जंगल के क़ानून पर चलता है — Survival of the fittest, गला काट प्रतियोगिताओं के दम पर चलता यह कैसा लोकतंत्र है?”

#5: ज्ञानाकर्षण or Learnamics

ज्ञानाकर्षण or Learnamics
I have a doubt regarding naming the channel. I can either use the name Learnamics, or it's hindi translation ज्ञानाकर्षण. There are some tradeoffs in either case. If I choose to call it Learnamics, I will have an advantage as I want to establish it as the core that powers the idea of DevLoved EduStudio. But, I can do the same by mentioning some where that these terms are mere translations. In case, I opt to use the name ज्ञानाकर्षण, I will have a leverage to evolve in distant future to target a larger English speaking audience on the platform of Learnamics. I can use ज्ञानाकर्षण to create essays based on the conclusions of my academic pursuit, termed as Lifeconomics. I think it will be wise to call our channel ज्ञानाकर्षण, and I can cross reference this channel to my blog. Thus creating a stage for each concepts to stand on their own. Do a rigorous SWOT analysis of this approach and suggest which name shall be title of our new channel — ज्ञानाकर्षण or Learnamics?

#4: Everyday Philosophy

Everyday Philosophy
The world evolves from the love of a die-hard romantic hero. A romance with life in love of death. Men who can love death are those romantic protagonist we need, we deserve. They try not to express their love, their love is self evident to any rational audience. They don't go beat around bushes to win hearts of ladies or even for that matter that of gents. Romance is an adventure one takes to evolve. This evolution in a person resonates and so the world around them evolves. The fuel to that evolution or often historically referred to as revolutions, are these unconditional love for death which consequently makes one love life. These revolutionaries of history as well as those of mythology or other literatures are those romantics with unwavering and unconditional love for death, and consequently for life.